फूलदेई छम्मा देई… से गुंजायमान हुआ प्रदेश, बडे धूमधाम से मनाई गयी फूल सक्रांति


संवाददाता।। संदीप ढौंडियाल  ।।सुख-शांति, प्रसन्नता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है फूलदेई।
देहरादून। पहाड़ हो या मैदानी क्षेत्र पूरे उत्तराखण्ड प्रदेश में फूलदेई पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। सूबे के मुखिया से लेकर तमाम राजनैतिक दलों के नेता हों या अफसर। सभी ने फूलदेई के पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मानते हुए शुभकामनाएं दी।
बसंत ऋतु के आगमन का आगाज उत्तराखंड के पहाड़ों में फूलदेई छम्मा देई लोक गीत की धुन और बच्चों की मधुर आवाज से होता है। गढ़वाल हो या कुमाऊं पूरे प्रदेश में फूल सक्रांति पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। क्षेत्रीय और बोली के आधार पर विभिन्न स्थानों पर इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसे फूल संगरांद, फूलदेई या फूल खाजी आदि।

क्यों मनायी जाती है फूल सक्रांति :-
सनातन धर्म में चैत्र माह को वर्ष का पहला महीना माना जाता है। चैत्र माह के पहेली गते को फूलदेई त्यौहार मनाया जाता है। जो कि बसंत ऋतु के आगमन का द्योतक है। बसंत ऋतु में चारों ओर पेड़ पौधों पर फूल खिले होते हैं। जिन्हें प्रसन्नता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही पेड़-पौधे हरियाली से आच्छादित होते हैं। जिन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। वहीं चैत्र मास में सूर्य कुंभ से मीन राशि में प्रवेश करते हैं। मीन राशि एक जलीय राशि है और जल तत्व को शीतलता अर्थात शांति का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में यह पर्व सुख-शांति, प्रसन्नता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

कैसे मनाई जाती है फूल सक्रांति :-
इस त्यौहार के आने की जितनी खुशी बड़ों में होती है उससे कहीं अधिक खुशी और उत्साह बच्चों में देखने को मिलता है। इस त्यौहार का सबसे मुख्य आकर्षण बच्चे ही होते हैं। एक शाम पहले बच्चों की टोकरीयों को लीपकर (गाय के गोबर और गोमूत्र का लेप लगाकर) तैयार किया जाता है। मान्यता है कि गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है। इसके पीछे यह भी कारण है कि बांस से बने हुए टोकरियों के छोटे-छोटे छेदों को बंद करने में यह उपयुक्त होता है। इस बीच बच्चे जंगल से ताजे फूलों को लेकर आते हैं। इस समय पहाड़ों में बुरांश का फूल अधिक मात्रा में पाया जाता है। बुरांश का फूल जिसे देखकर कोई भी मोहित हो सकता है। ऐसे में बच्चों को यह फूल ले कर आने की सबसे ज्यादा उत्सुकता रहती है। फिर बच्चों को इंतजार रहता है अगली सुबह का। भोर होते ही बच्चे नहा धोकर अपने इष्टदेव की पूजा करके निकल पड़ते हैं एक टोकरी में फूल और कुछ भुना हुआ चौलाई लेकर अपने सबसे पसंदीदा पर्व फूलदेई को मनाने के लिए। पूरे गांव में घूमते हुए बच्चे फूलदेई छम्मा देई गीत गाकर बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। श्रीनगर-पौड़ी क्षेत्र में यह गीत फूलदेई , छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, तुमार देही मा, बार-बार नमस्कार गाया जाता है। वहीं ढौंडियालस्यूं – चौथान पट्टी में यह फूल-फूल खाजी, दे महाराजी, म्यारु बांठा कु, नै-नै खाजी गीत गाया जाता है। ऐसे ही विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से यह गीत गाया जाता है। गीत गाते हुए बच्चे घरों की देहली पर फूल बिखेरते हैं। जिसका अर्थ है कि आपके आने वाले हर पड़ाव का रास्ता फूलों से भरा हो। इस कामना के बदले में बच्चों को मिलता है गुड, पूरी-पकौड़ी, भुनी हुआ चौलाई और कई मिठाइयां आदि। वहीं पहली बार फूलदेई खेलने वाले छोटे बच्चों की टोकरी में चावल के दाने डाले जाते हैं। जो कि मोती के प्रतीक माने जाते हैं।