ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को क्वॉरेंटाइन करना चुनौतीपूर्ण

देहरादून। उत्तराखंड सरकार की ओर से लगभग डेढ़ लाख प्रवासी उत्तराखंडियों को वापस लाने की मुहिम एक बार फिर से शुरू की जा रही है। जिसे सभी राजनीतिक दलों सहित लोगों का भी समर्थन मिल रहा है। लेकिन वहीं इस को लेकर कुछ सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं। जैसे कि क्या इतनी बड़ी संख्या में लोगों को क्वॉरेंटाइन करना संभव हो पाएगा। क्या हमारे पास ऐसे संसाधन मौजूद हैं जो इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडियों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए क्वॉरेंटाइन किया जा सके। यूं तो सरकार की ओर से इसको लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। जिसमें इस पूरी प्रक्रिया का जिम्मा ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामसभा के प्रधान को सौंपा गया है। इसको लेकर तमाम ग्रामीणों का कहना है कि यह फैसला कुछ हद तक तो ठीक है। पर अगर देखा जाए तो इसके व्यावहारिक रूप से सफल होने में अभी असमंजस हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में सभी लोग एक दूसरे से मिले-जुले तरीके से रहते हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेंस का पालन करना एक बड़ी चुनौती होगी। वहीं ग्राम प्रधान अपने ही लोगों के दबाव में भी आ सकता है। साथ ही राजनीतिक रूप से भी प्रधान पर कई दबाव बन सकते हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों की राजनीति अगर प्रधान के विपक्ष में कार्य करने लगे तो परिणाम और भी घातक हो सकते हैं। लिहाजा ऐसी स्थिति से निपटने के लिए जरूरी हो जाता है कि प्रशासन से एक व्यक्ति को प्रधान के साथ नियुक्त किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की परिस्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन को चाहिए कि प्रधानों को प्रशासनिक तौर पर अधिक मजबूत किया जाए। जिससे कि वह स्वतंत्र होकर कार्य कर सकें। वहीं शासन की ओर से ग्राम सभाओं में मौजूद विद्यालयों, पंचायत घरों सहित तमाम सरकारी भवनों आदि को क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाने के लिए उचित व्यवस्थाएं बनाई जाये। ऐसा न होने की स्थिति में कोरोना संकट काल में राज्य के अंदर एक भयंकर अराजक स्थिति पैदा हो सकती है।