विद्यालय देश का भविष्य तय करते हैं। लेकिन विद्यालयों का भविष्य तय करते हैं मनमाने मंत्री

 


देहरादून। पूरे विश्व में कोरोना काल के चलते हर क्षेत्र में मंदी का दौर चल रहा है। वहीं उत्तराखंड प्रदेश सोशल मीडिया पर चल रहे 3 महीने की स्कूल फीस को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच राज्य के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे का बयान सामने आया। उन्होंने कहा कि जो लोग स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे हैं वह अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में क्यों नहीं कराते। इस बयान के सामने आने के बाद से ही लोगों ने उन्हें निशाने पर लेना शुरू कर दिया। मंत्री महोदय को शायद यहां की सरकारी विद्यालयों की हकीकत पता नहीं है। अब उन्हें कौन बताए कि आम जनता तो पढ़ा ही लेगी अपने बच्चों को इन विद्यालयों में आपके कहने भर से ही। लेकिन क्या हमारे विद्यालयों में ऐसी गुणवत्ता है जो एक प्राइवेट स्कूल देता है। सवाल ये उठता है कि अगर हमारे सरकारी विद्यालय इतने सक्षम होते तो फिर प्राइवेट स्कूलों के लिए इतनी मारा मारी क्यूं।

ग़ौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में उत्तराखंड राज्य बनने से पहले शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता दोनों अच्छी थी। 19 साल बाद सरकारी स्कूलों में ऐसा क्या हुआ न तो शिक्षक हैं औरन ही पढ़ने वाले बच्चे। कईयों का कहना है कि हमारे राज्य को शिक्षा मंत्री अच्छे नहीं मिल पाए। जो कि मौजूदा हालातों में सही भी लगता है। इस राज्य का दुर्भाग्य ही रहा है कि कोई दूरदर्शी नेता नहीं मिल पाया। या फिर हम ढूंढ नहीं पाए। माननीयों को चाहिए कि कुछ भी अटपटा बयान देने से पहले सोच लेना चाहिए। वैसे हमारे समय सरकारी स्कूल में पढ़ाया जाता बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि। अब मंत्री जी ने इस बात पर कितना अमल किया होगा ये तो भगवान ही जाने।

हकीकत तो यह है कि सरकारी स्कूलों के साथ ही यहां के नेताओं की दशा और दिशा दोनों ही खतरे में है। कहा जाता है कि विद्यालय देश का भविष्य तय करता है। लेकिन यहां विद्यालयों का भविष्य ही खतरे में है। जनता हमेशा मांग उठाती रही है कि मंत्री व बीआईपी अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करायें तो ही प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बंद होगी। वैसे दबी जुबान से तो यह भी कहा जाता है कि तमाम बड़े विद्यालय भी इन्हीं माननीयों के हैं।