अपने अस्तित्व को बचाने की राह ताकता सूर्यप्रयाग संगम बैसाखी पर देव डोलियों से गुलराज रहता था संगम

श्रीनगर। उत्तराखंड देवभूमि को यूंही नहीं कहा जाता है, यहां अनेकों किस्से देवी, देवताओं अवत्रित के सुने व देखे जा सकते हैं, तो देवीयों की देवडोलियों व निशान भी प्रत्येक विशेष पर्वों पर पवित्र नदियों के संगम पर मिलन और स्नान के साथ ही मेले भी सदियों से लगते आते रहे हैं। लेकिन आधुनिकता के बढते प्रचलन और आध्यात्म की ओर कम होती रुचि के कारण कभी देवी देवताओं से गुलजार पवित्र संगम स्थल विरान पड़े हैं या यूं कहें अपने अस्तित्व को बचाने की राह ताक रहे हैं। इन्हीं में से गढवाल क्षेत्र के पूर्व मे टिहरी, चमोली जिले का संगम स्थल सूर्यप्रयाग जो वर्तमान मंे रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जहां सैकड़ों देव डोलीयों और देवनिशान उत्तरायणी, बसंत पंचमी व बैसाखी के पर्व पर सैकडों की संख्या में गंगा स्नान के लिये रात्री विश्राम के लिऐ आते थे। इसके साथ ही हजारों की संख्या में देवी देवताओं के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता था। तब के टिहरी और वर्तमान रूद्रप्रयाग जिले कि बात की जाय तो देवडोलियों में पीठासणी देवी (श्यामा गौरी), कण्डाली से इन्द्रासणी, कुमड़ी से कुशमांडा, नौली क्षेत्रपाल, घरण्यां नागराजा, जवाड़ी क्षेत्रपाल, लस्या नगेला सहित  दर्जनों देवी देवता सूर्यप्रयाग संगम पर रात्री प्रवास करते थे। देव डोलियों के आगमन से पूरे क्षेत्र के लोगों का आध्यात्मिक मनोरंजन होता था और पूरे सूर्यप्रयाग में सैकड़ों दुकानें लगती थी। लोग जमकर खरीदारी भी करते थे। दूसरे दिन प्रातः स्नान के बाद वापस अपने-अपने गंतव्य की ओर चले जाते थे। लेकिन वर्तमान मंे सूर्यप्रयाग अपने बीते दिनों के तीज, त्योहार एवं बैसाखी के पर्व याद करके मायूस और लाचार बेबस होकर खुद को कोश रहा हैं।
सूर्यप्रयाग में होता है लस्तरणी और मंदाकिनी का संगम
बाक्स न्यूज… सूर्यप्रयाग मे देवी देवताओं का स्नान का महत्व इसलिये भी है कि यहां पर दो नदियों का संगम स्थल है। केदारनाथ उद्गम से मंदाकनी नदी है तो नारायण स्थल त्रीयुगी नारायण से गुप्त होकर बधाणी ताल में प्रकट होकर लस्तरणी के रूप मे बहती है। जो कि सूर्य को अर्घ देने शुद्ध रूप से पूरव की तरफ बहती है तथा यहां पर मंदाकिनी और लस्तरणी का संगम है। तथा इसे सूर्य नदी भी कहा जाता है। मंदाकिनी और लस्तरणी को धियाण भी कहा जाता है। उसी तरह सूर्यप्रयाग मे बैसाखी मेले को धियाणीयों का मेला भी कहा जाता था क्योंकि बीते दसकों मे बहू, बेटीयों के पास मिलने, जुलने व खोज खबर करने साधन और संसाधन नही थे तो उन्हें अक्सर बैसाखी मेले देव दर्शन करने के बहाने मिलने का बहाना भी मिल जाता था इसीलिये इसे धियाणीयों का मेला भी कहा जाता था।

बैसाखी को अन्नदाता त्यौहार भी कहा जाता है
विशेष पर्वों मंे बैसाखी का पर्व का ज्यादा महत्व होता  है शास्त्रों के अनुसार बैसाख मास मंे सूर्य मेष राशी मे प्रवेश करता है और इसे अन्नदाता त्यौहार भी कहा जाता है।