जोशीमठ आपदा के चलते तीर्थयात्री कैसे करेंगे बैकुंठ धाम के दर्शन
देहरादून। साल 2022 में चारधाम यात्रा अपने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि 2023 में भी लाखों यात्री इसी तरह धामों में दर्शनों के लिए पहुंचेंगे। हिंदू परंपराओं की मानें तो चारधाम यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री और केदारनाथ धाम के बाद अंतिम चरण में बदरीनाथ में भगवान बदरी विशाल के दर्शन के साथ पूरी की जाती है, लेकिन इस बार बदरीनाथ धाम की यात्रा धामी सरकार की चिंता बढ़ाए हुए है। दरअसल, पिछले एक महीने से राज्य सरकार जोशीमठ में दरार और भू-धंसाव को लेकर काफी चिंतित हैं। हालांकि, सरकार ने विभिन्न संस्थाओं के वैज्ञानिकों को काम पर लगाया है। साथ ही मुआवजे की राशि समेत विस्थापन पर भी होमवर्क किया जा रहा है, लेकिन इन सब तैयारियों के बीच चिंता अप्रैल महीने को लेकर भी है। जब चारों धामों में कपाट खुलने के साथ उत्तराखंड में लाखों तीर्थ यात्री पहुंचना शुरू हो जाएंगे।
वैसे यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ में तो सरकार एवं प्रशासन पिछले साल की तरह तमाम व्यवस्थाएं बना रही है, लेकिन अंतिम चरण यानी बदरीनाथ यात्रा की चुनौतियों से कैसे पार पाया जाए? इस पर विचार हो रहा है। उधर, आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा कहते हैं कि सरकार लाखों यात्रियों के जोशीमठ से गुजरने की स्थितियों पर विचार कर रही है और सभी विकल्प खुले रखे गए हैं।
जोशीमठ में आपदा के बाद तीर्थ यात्रियों को किस फॉर्मूले के तहत बदरीनाथ धाम तक सुरक्षित और सुविधाओं के साथ पहुंचाया जाए? यह सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय है। विकल्प के तौर पर यात्रा में यात्रियों को सीमित संख्या में भेजे जाने के विकल्प पर भी चिंतन संभव है। यह मार्ग बदरीनाथ धाम तक पहुंचने के साथ ही बॉर्डर क्षेत्र तक भी पहुंचता है। लिहाजा, इस मार्ग पर दरारें आने और भू धसांव होने से इसका असर सामरिक लिहाज से भी पड़ेगा। लिहाजा, सीधे भारत सरकार और गृह मंत्रालय की भी मॉनिटरिंग इस क्षेत्र में बनी हुई है।
वैसे क्षेत्र के महत्व को समझते हुए पूर्व से ही हेलंग से मारवाड़ी बाईपास मार्ग के रूप में वैकल्पिक मार्ग बनाने पर काम चल रहा है, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया था। जिस पर फिलहाल राज्य सरकार ने एक कमेटी बनाकर इसको लेकर भविष्य में विचार करने का फैसला लिया है। इस मार्ग के बनने से बदरीनाथ की दूरी 27 किलोमीटर कम हो जाएगी। उधर, यह बाईपास करीब 6 किलोमीटर लंबा बताया गया है। हालांकि, इसका काम रुकने के बाद इसके निर्माण में लंबा समय लग सकता है। लिहाजा, अप्रैल में पुरानी रास्ते पर कैसे तीर्थ यात्रियों की आवाजाही करवाई जाएगी? यह बड़ा सवाल है।
जोशीमठ नगर के आपदा की चपेट में आने से यहां बड़ी संख्या में यात्रियों के रुकने का सिलसिला भी थम जाएगा और इसके चलते बाकी पड़ावों पर भारी दबाव रहेगा। जबकि यह पहले ही बताया जा रहा है कि कई जगहों पर सड़कों पर भू-धंसाव की स्थिति बनी हुई है।