कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड
2022 को होने वाले विधानसभा चुनाव के मात्र दो वर्ष रह गए है। किन्तु कांग्रेस संगठन अब भी हाशिए पर नजर आ रहा है। उत्तराखण्ड कांग्रेस संगठन अब तक किसी भी मामले में त्रिवेन्द्र सरकार को घेरने में विफल रहा है। आज कांग्रेस में मास लीडर की कमी खल रही है।
जब से कांग्रेस प्रदेश संगठन की डोर प्रीतम सिंह के हाथो में आई है। कांग्रेस संगठन हर मोर्चे पर विफल साबित हो रहा है। जिसके चलते सदन से लेकर संगठन तक प्रदेश की भाजपा सरकार को घेरने में कामयाब नही साबित हो रहा है। दिग्गजों में हरीश रावत ही एक मात्र मास लीडर बजे है। जो केन्द्रीय संगठन में और असम के प्रदेश प्रभारी होने के साथ साथ उत्तराखण्ड में भी सरकार को यदा कदा घेरने का काम करते है। राजनीतिक विषेलषकों का कहना है कि प्रीतम सिंह एक अच्छे इमानदार विधायक और मंत्री हो सकते है किन्तु संगठन चलाने के लिहाज से उन्हे योग्य नही कहा जा सकता। ंप्रदेश की नेता प्रतिपक्ष डाॅ इंदिरा हृदेयश सांगठनिक दृष्टि से अपना वजूद नही बना पा रही है। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का घालमेल में पूरी कांग्रेस पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। हालत यहां तक है कि दो वर्ष बाद प्रदेश चुनावी मोड में होगा और कांग्रेस संगठन अब भी अपनी जीर्णशीर्ण गतिविधियों को अन्जाम देने पर तूला है। राजनीतिक विष्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनाव को देखते हुए पार्टी आलाकान को पुनरूउत्तराखण्ड की बागडोर हरीश रावत को सौंप देनी चाहिए। क्योंकि हरीश रावत एक मात्र लीडर होने के साथ ही संगठन चलाने में सक्षम रहे है। उनका राजनीतिक कद आज उत्तराखण्ड में ही नही बल्कि एक सफल संगठन के नेता और कुशल राजनीतिज्ञियों में शुमार होता है। कुछ का तो यहां तक कहना है कि अगर 2022 में कांग्रेस सत्ता पर आती है। तो हरीश रावत के बूते पर ही आएगी। वर्ना वर्तमान संगठन की गतिविधयों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस के लिए दिल्ली बहुत दूर है।