तीर्थ पुरोहितों ने किया बदरी-केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की ऑनलाइन पूजा के प्रस्ताव का विरोध
देहरादून। बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में कपाट खुलने के समय धामों के रावलों की ओर से ऑनलाइन पूजा के प्रस्ताव को तीर्थ पुरोहितों ने ठुकरा दिया है। उनका कहना है कि यह पहले से ही परंपरा रही है कि रावल अगर नहीं पहुंच पाते हैं तो संबंधित धाम के अधिकारी, पुरोहित विधि-विधान से पूजा अर्चना करा सकते हैं।
बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व सदस्य आचार्य नरेशानंद नौटियाल ने इस मामले को लेकर सीएम को पत्र लिखा है। उनके मुताबिक कपाट खुलने के समय दोनों धामों में सभी वैदिक कर्म और कर्मकांड रावलों की ओर से ही किए जाते हैं। लेकिन अगर रावल उपस्थित न हों तो बदरीनाथ में यह काम डिमरी समाज के पुरोहितों की ओर से ही किया जाना चाहिए। वहीं, केदारनाथ धाम में रावल के उपस्थित न होने पर केदारनाथ गद्दी के अधिकारी शुक्ला वंश के लोग ही पूजा भोग एवं कपाट खुलने के समय के अन्य कर्मकांडों के आयोजन के अधिकारी हैं। ये लोग पहले भी इस तरह की स्थिति में यह काम करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूजा अर्चना के लिए रावल को बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में लाने की जिम्मेदारी सरकार की है। कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के कारण रावल नहीं पहुंच पा रहे हैं तो हक हकूकधारियों और तीर्थ पुरोहितों की ओर से ही यह पूजा होनी चाहिए। अचार्य के मुताबिक बदरीनाथ धाम में बामणी गांव का नंदा देवी मंदिर, उर्वशी मंदिर, माता मूर्ति मंदिर, माणा गांव के लोगों के ईष्ट देवी, देवों के मंदिर, बदरी नृसिंह मंदिर, महाप्रभु बैठक आदि भी दर्शन के लिए खोले जाते हैं। उनमें भी पूजा पंडा एवं तीर्थ पुरोहित समाज की ओर से ही की जाती है। मंत्रिपषिद की बैठक में कहा गया था कि चारों धामों में कपाट तय समय पर ही खुलेंगे। केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में अगर रावल नहीं पहुंच पाते हैं तो कपाट खुलने की पूजा ऑनलाइन कराने पर भी विचार किया जा सकता है। वैसे सरकार दोनों रावलों को उत्तराखंड लाने की कोशिश में है और शासन ने इसके लिए गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा है।