पत्रकारिता का काला सच

अनिल पंछी
देहरादून। राज्य और केन्द्र सरकार की पत्रकार विरोधी नितियों के चलते कोरोना महामारी के चलते पत्रकारिता का निरतंर हर स्तर पर उपेक्षा हो रही है। उपर से पत्रकारों को दिए जाने वाले सुविधाओं के नाम पर सूचना विभाग द्वारा बनाए गए फर्जी पत्रकार संगठनों के द्वारा बंदरबंाट का क्रम जारी है। इतना ही नही पत्रकार संगठन के पदाधिकारी वो लोग बनकर बैठे है। जिकका पत्रकारिता से कोई लेना देना ही नही है। उपर से विज्ञापन के लोग पत्रकारिता की कमान संभाल कर बैठे है। जिससे पत्रकारों को हर स्तर पर नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ष 2011 में निशंक सरकार द्वारा अनिल पंछी पर मुदकमा दायर किया गया था। जिसके बाद कुछ लोग बीच में आए और एनएन आई बंद कराकर आजखबर न्यूज ऐजेन्सी की शुरूआत मुझसे करा दी गयी। उस समय में समझ नही पाया कि जिन्हे में अपना मित्र समझ रहा हंू वे सत्ता के दलाल है। जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नही है। उनके कहने पर मैने एक समाचार ऐजेन्सी खड़ी की। बाद में पता चला जिसके नाम पर वह ऐंजेन्सी खडी की गयी वो तो माकेेटिंग का आदमी है और वह पूरी तरह से खिलाडी निकला। वह मुझे हर स्तर पर गिराने का काम करने लगा। इतना ही नही मेरे द्वारा बनाए गए ग्राहकों को भी उसने अपने द्वारा रखे गए लोगों में बांट दिया। अब वह मुझे ऐजेन्सी से बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहा है। पर वो नही जानता की पत्रकारिता में मै उससे कहीं अधिक ताकतवर हंू। उसका नाम प्रवीन मैहता है और उसका गुर्गा मेरा ऐन्जेसी में रखाा हुआ मेरा साथी विरेन्द्र दत्त गैरोला है। इन बच्चों को मार दिया जाए या छोड दिया जाए यह अपने निश्पक्ष पत्रकार बधुओं को तय करना है। क्योंकि ये दोनों शायद पढे लिखे अनपढ है जो नही जानते की पत्रकारिता की ताकत क्या होती है।