बुग्यालों मा फिर लौटि आयूं होलू बसंत

संदीप ढौंडियाल
…फिर खिलखिला उठी होंगी फूलों की घाटियां
देहरादून। देश के विभिन्न हिस्सों में बसंत ऋतु का आगमन अमूमन चैत्र-वैशाख के महीने में हो जाता है। लेकिन उत्तराखंड के ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में यहां की भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल बसंत ऋतु का आगमन ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीने में होता है। यही समय होता है जब इन क्षेत्रों में डालियों में फूल और ऊंचे पर्वतों में जंगली फलों के साथ ही तमाम बुग्याल और फूलों की घाटियां लकदक आच्छादित रहती है। ऐसे में सचमुच प्रकृति की छटा अद्भुत और दर्शनीय होती है। वाकई प्रकृति की संरचना बेहद जटिल और गूढ़ रहस्यों से भरी होने के साथ ही उतनी ही सुंदर भी है।
उत्तराखंड के भूभाग में मुख्यतः सात प्रकार के वन पाए जाते हैं। जिनमें उपोष्ण कटिबंधीय वन समुद्र तल से लगभग 750 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। धीरे-धीरे ऊंचाई बढ़ने के साथ ही वनों के प्रकार और उनका स्वरूप भी बदलते जाते हैं। जैसे 900 से 1800 मीटर पर शुरू होने वाले कोणधारी वन और अंत में एल्पाइन वन लगभग 2700 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं। जिनके बाद और अधिक ऊंचाई पर घास के बड़े-बड़े मैदान पाए जाते हैं। जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। मध्य हिमालय में समुद्र तल से लगभग 3800 से लेकर 4200 मीटर की ऊंचाई पर बुग्याल पाए जाते हैं। जैव विविधताओं से भरपूर होने के साथ ही यह बुग्याल जड़ी बूटियों से संपन्न होते हैं। मेडिकल या आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माने जाने वाली जीवन रक्षक दवा कीड़ा जड़ी भी इन्ही बुग्यालों में पाई जाती है। आज ग्लोबल मार्केट में कीड़ा जड़ी की कीमत लाखों में आंकी जाती है। जिन बुग्यालों में वनस्पति पाई जाती हैं उन्हें धति बुग्याल कहा जाता है। बुग्यालों को अन्य पहाड़ी राज्यों में जैसे कश्मीर में मर्ग और हिमाचल में थच कहा जाता है।
ऐसे ही उत्तराखंड के चमोली में विश्व प्रसिद्ध बुग्याल फूलों की घाटी मौजूद है। जहां प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में सैलानी पहुंचते रहे हैं। सन् 2005 में यूनेस्को की ओर से इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। फूलों की घाटी के अलावा प्रदेश में लगभग 25 से 30 अन्य बुग्याल मध्य हिमालय में स्थित हैं। जिनमें बेदनी बुग्याल, द्यारा बुग्याल, कुशकल्याणी, पवांली कांठा और हर की दून आदि प्रमुख और रमणीय बुग्याल हैं। इस समय तमाम बुग्यालों में मखमली घास और वनस्पतियां बुग्यालों को और अधिक मनमोहक बना रही हैं। पर्यटन के लिहाज से यह स्थल अत्यंत सुरम्य होने के साथ ही जैव विविधताओं का भंडारण है। उत्तराखंड पर्यटकों को तेजी से अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। ऐसे में इन तमाम बुग्यालों तक पर्यटकों की पहुंच आसान करने के लिए ज्यादा से ज्यादा मार्केटिंग के साथ ही तमाम सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। वनस्पति विज्ञान पर शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह बुग्याल नए अवसर पैदा कर सकते हैं। बुग्याल अपने आप में प्रकृति की शिक्षा देने वाले प्राकृतिक पाठशालायें हैं। हमें इन धरोहरों को संजोए रखने के साथ ही इसका लाभ भी लेना चाहिए।